छत भी टूटी हुई थी खुली खिड़कियाँ,
आज रोता बड़ा दर्द मे सिसकियाँ।
खूब हमने मनाया उन्हे प्यार से,
हाय फिर भी रही यार से तल्खियां।
क्यो मैं लिखती रही दर्द वाली गजल,
लोग ढूँढे मुझी मे सभी खामियाँ।
आज टूटा कहर जिंदगी मे बड़ा,
फिर गिराने लगा आँसमा बिजलियाँ।
प्यार से दिल बड़ा मुस्कुराने लगा।
देख कर आज तेरी हँसीं शोखियाँ।
– रीता गुलाटी ऋतंंभरा, चंडीगढ़