भारत माँ का रक्षक हूँ और आग से आग बुझाता हूँ ।
अपने शोणित की बूंदों से माँ की तस्वीर सजाता हूँ ।।
मैं चट्टानों से लड़ता हूँ और रेगिस्तान पठारों से ।
बर्फीले तूफानों से भी नदिया की उठती धारों से ।
सर्द गर्म मौसम से लड़ता बेरहम ठंड की रातों में ।
मैं भी दूल्हा बन जाता हूँ इन टैंकों की बारातों में ।
अपने जन गण मन की खातिर मैं मौत से भी लड़ जाता हूँ ।
भारत माँ का रक्षक हूँ और आग से आग बुझाता हूँ ।।1
मैं भारत वाहिनी का नायक मुझे छंद व्याकरण नहीं आते ।
मैं गीत आग के गाता हूँ मुझे काव्य अलंकरण नहीं भाते ।
मैं भगत सिंह का वंशज हूँ मुझे गांधीवाद नहीं आता ।
सीमा पर आग उगलता हूँ झूठा संवाद नहीं आता ।
अपनी रायफल साज बनाकर वंदेमातरम गाता हूँ ।
भारत माँ का रक्षक हूँ और आग से आग बुझता हूँ ।।2
मैं मात भवानी का अनुचर और चौकीदार शिवालय का ।
मैं रण चंडी का सहचर हूँ और पहरेदार हिमालय का ।
मैं शांति दूत हूँ शिवजी का मैं महाकाल का हस्ताक्षर ।
मैं अमर आत्मा अमर नाथ मैं स्वयं शम्भू का बीजाक्षर ।
अरि का अहंकार हरने मैं नरसिंह रूप दिखलाता हूँ ।
भारत माँ का रक्षक हूँ और आग से आग बुझाता हूँ ।।3
मुझको गीत नहीं आते हैं बिंदिया के कुमकुम रोली के ।
आतंकों के साये में क्या मैं गीत लिखूँगा होली के ।
कविता बारूदी लिखता मेरे शब्दों में चिंगारी है ।
नापाक ,चीन दोनो से लड़ने की पूरी तैयारी है ।
“हलधर” के शब्दों में अपने मन की ये बात सुनाता हूँ ।।
भारत मां का रक्षक हूँ और आग से आग बुझाता हूँ ।।4
– जसवीर सिंह “हलधर” , देहरादून
मेरठ में बाबा टिकैत के आंदोलन में गुरु जी (डा हरिओम पंवार) की कविता सुन कर रागिनी और कविता का अंतर भान हुआ और यह पहली कविता लिखने का प्रयास किया। आज उनके जन्म दिन पर ये कविता उन्हीं को समर्पित करता हूं ।