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तथता (महात्मा बुद्ध) – सुनील गुप्ता

” त “,तस्वीर

प्रभु की,

हो अगर तुम्हें देखनी  !

तो, देखलें मन अंदर झाँक के,

क्यूँ बाहर भटकते घूमते फिरते हो…,

अरे ज्ञानी वह तो बैठा भीतर ही तेरे  !! 1!!

 

” थ “,थका-मांदा

पथिक रे,

ठहर रुक जरा यहाँ पे  !

कहाँ तू भागा चला जा रहा,

पहले बात करले आत्माराम से…,

वह कब से बैठा तेरी राह तक रहा!! 2 !!

 

” ता “,तादात्म्य

बैठाए चल,

तू प्रभु संग अपने  !

छोड़ दे मोह-माया मिथ्या आडंबर,

क्यूँ मारा-मारा फिरता यहाँ पर….,

पहले जीवन भेद तत्त्व ज्ञान जान लें !! 3!!

 

” तथता “, तथता

नहीं जड़ता,

बनें हम सभी तथागत  !

चलें स्वयं को स्वयं से समझें,

बनें बुद्ध पुरुष ज्ञानी तथागत…,

और सम्यक भाव संग जीए चलें !! 4 !!

 

” तथता “, तथता

है सत्यता,

करें नित आगत का स्वागत  !

सदा रहते वर्तमान तत्क्षण में,

हम करते रहें खोज आनंद की…..,

यही संदेश दे गए बुद्ध तथागत !! 5 !!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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