झुका ली आपने नजरें सिला अच्छा नही लगता,
चले आओ सनम मेरे खफा अच्छा नही लगता।
दुआ माँगे खुदा से अब,जुदा होना नही मुझसे,
रहूँ अब दूर गर तुमसे, दगा अच्छा नही लगता।
हमे तेरी मुहब्बत का नशा सा हो गया कितना,
बिना तेरे जिये कैसे जरा अच्छा नही लगता।
दिया तुमने दगा हमको,बने दुशमन हमारे तुम,
कभी दुशमन का कोई मशविरा अच्छा नही लगता।
जगी है लौं मेरे दिल मे,करूँ पूजा तुम्हारी मैं,
सदा दिल मे बसाया सजा अच्छा नही लगता।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़