जीवन में मधु घोल सके जो ,ऐसा वातावरण कहाँ है ।
सामाजिक चिंतन वाला भी ,अब नैतिक जागरण कहाँ है ।।
कितने जतन करे मानस ने ,लोभ मोह की व्याधि न छूटे ।
बाहर बाहर प्यार जताये, अंदर अंदर कुंठा फूटे ।
सबके संरक्षण वाला अब , चिंतन का आवरण कहाँ है ।।
समाजिक चिंतन वाला भी ,अब नैतिक जागरण कहाँ है ।।1
भाषण बाजी बहुत हो गयी ,कभी कभी खुद से भी बोलो।
गांठ खोलकर अंतर्मन की , भीतर का वातायन खोलो।
खोजो जग के निर्माता का ,धरती पर शुभ चरण कहाँ है ।।
सामाजिक चिंतन वाला भी ,अब नैतिक जागरण कहाँ है ।।2
सदा घूमते रहे अकेले , भीड़ भाड़ के कोलाहल में ।
योग ध्यान से दूर हो गए ,भोग विलासा के जंगल में ।
सादा जीवन जीने वाला वैदिक पथ संभरण कहाँ है ।।
सामाजिक चिंतन वाला भी ,अब नैतिक आचरण कहाँ है ।।3
खोज न पाए ऐसा साथी ,साथ रहे जिसकी पर छाई ।
ऊपर ऊपर उजला पाया ,जमी रही अंतस पर काई ।
जीवन के इस महासमर में ,ऐसा नैतिक वरण कहाँ है ।।
सामाजिक चिंतन वाला भी ,अब नैतिक आचरण कहाँ है ।।4
चार दिनों के इस मेले में , थोड़ी गरिमा थोड़ा यश हो ।
खूब लुटाओ प्रेम पंजीरी ,अंत समय तक भरा कलश हो ।
सोम सुधा कविता में भर दे “हलधर” वो व्याकरण कहाँ है ।।
सामाजिक चिंतन वाला भी ,अब नैतिक आचरण कहाँ है ।।5
जसवीर सिंह हलधर, देहरादून