पूर्णिमा सी चमकती रही चाँदनी,
मीत की बाट जोहती रही कामिनी।
ये मिलन तो विरह में बदलने लगा,
शूल की भांति चुभती रही यामिनी।
सुनो प्रियवर जरा मेरा अनुनय विनय,
दीप्त माथे पे तुम हुआ तुमसे प्रणय।
यह महावर अरु चूड़ी निशानी तेरी,
माँग यूँ सजा रहे हो ना कुछ अनय।.
– सविता सिंह मीरा.जमशेदपुर