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आभासी रिश्तों की उपलब्धि (संस्मरण) – सुधीर श्रीवास्तव

Neerajtimes.com – 24 अप्रैल 2024 की सुबह लगभग साढ़े दस बजे सात समंदर पार खाड़ी देश से आभासी दुनिया की मुँहबोली बहन का फोन आया।  प्रणाम के साथ उसके रोने का आभास हुआ,  तो मैं हतप्रभ हो गया है। जैसे तैसे ढांढस बंधाते हुए रोने का कारण पूछा तो उसने किसी तरह रुंधे गले से बताया कि भैया, आपके स्नेह आशीर्वाद को पढ़कर खुशी से मेरी आंखे छलछला आई, मैं निःशब्द हूं, बस रोना आ गया, समझ नहीं पा रही कि मैं बोलूं भी तो क्या बोलूं?

रोते रोते ही उसने कहा यूँ तो आपकी आत्मीयता का बोध मुझे कोरोना काल से है, जब मैं कोरोना से जूझ रही थी और आपने उस समय जो आत्मीय संबंध और संबोधन दिया और आज भी उस स्नेह भाव को मान देकर मुझे गौरवान्वित कर रहे है। पर आज तो आपके स्नेह आशीर्वाद की इतनी खुशी पाकर रोना ही आ गया।

हुआ ये कि लगभग एक सप्ताह पूर्व जब उसने मुझे अपने गीत संग्रह के शीघ्र प्रकाशन की जानकारी दी, तो मुझे भी बहुत खुशी हुई, जो स्वाभाविक भी थी, क्योंकि उससे जो आत्मीय स्नेह और अपनत्व मिश्रित अधिकार मुझे मिल रहा है, उसके परिप्रेक्ष्य में मेरी प्रसन्नता का स्वाभाविक कारण भी था। लिहाजा मैंने भी बिना किसी विलंब या औपचारिकता के बड़े भाई की तरह पूर्व की भांति ही उसे जब अपना स्नेह आशीर्वाद और शुभकामनाएं दी, तब उसने पूरे अधिकार से कहा कि आपके स्नेहिल आशीर्वाद की और भी आकांक्षा है भैया, जिसे मैं सदा के लिए अपनी पुस्तक में संजो कर रखना चाहती हूँ। जिसके बाद मुझे उसके आग्रह को मान देना ही था। उसके स्नेह आग्रह को टालने की गुंजाइश तो थी ही नहीं, साथ ही उसके आग्रह को टाल कर उसका अपमान करने का साहस कर पाना तो और भी कठिन।

लिहाजा एक कवि साहित्यकार से परे हटकर एक बड़े भाई के तौर पर मैंने उसके संग्रह के लिए जब अपनी शुभकामना लिखकर भेजी, तब उसकी खुशी का वर्णन शब्दों में कर पाना महज औपचारिकता होगी। लेकिन उसकी जो संक्षिप्त प्रतिक्रिया मिली उसके अनुसार- आपका स्नेहिल आशीर्वाद है भैया जी, जिसे मैं हमेशा अपनी पुस्तक में संजो कर रखूंगी। आपका स्नेह मेरे लिए असीम ऊर्जा का स्रोत है।ह्रदय की गहराइयों से अनंत आभार।मन:पूर्वक अभिनंदन।सादर प्रणाम भैया जी, आपके स्नेह आशीर्वाद को पढ़कर खुशी से मेरी आंखे छलछला आईं, निःशब्द हूं -आपकी छोटी बहन

मैं आप सभी को बताना चाहूंगा कि वो निहायत ही सरल सहज होने के साथ ही वैश्विक स्तर की कवयित्री, संचालिका है, ईमानदारी से कहूं तो उसके व्यक्तित्व कृतित्व के आगे मैं खुद को बौना ही समझता हूँ। फिर भी वो मुझे एक अभिभावक/अग्रज जैसे स्थान पर रखकर खुश रहती है। उसके संचालन में मुझे पहली आभासी काव्य गोष्ठी में शामिल होने का अवसर उसकी ही एक आभासी सहेली के द्वारा मिला।तब मुझे लगा कि मुझ जैसे नवोदित कलमकार के बारे में भला कौन कितना जानता होगा। लेकिन जब उसने मेरा परिचय दिया तो मैं दंग रह गया कि अपनी जिम्मेदारियों के प्रति उसमें कितना जूनून है।

उसके कुछ समय बाद ही वह कोरोना का शिकार हुई, उसके परिवार में कुछ और सदस्य भी कोरोना की चपेट में आ चुके थे। उसकी ही सहेली की किसी मंच पर जब उसकी बीमारी की सूचना देखी, तो मैंने उन्हीं से संपर्क सूत्र लेकर उसे संदेश भेजकर हालचाल जानने का प्रयास किया। कुछ दिनों की प्रतीक्षा के बाद उसने अपनी हालत में सुधार की जानकारी दी और साथ ही आभार धन्यवाद किया। उसके बाद जब वह और स्वस्थ हुई तो फोन कर पूरी जानकारी दी। वह इस बात से बहुत खुश थी कि आभासी दुनिया में भी संवेदनाओं की भी अपनी जगह है, जिसका उदाहरण उसके लिए मैं हूँ।

फिर तो यह सिलसिला आगे बढ़ता गया और कब यह आत्मीय रिश्ते में बदल गया, पता ही न चला। तब से लेकर अब तक वो अपने हर छोटे बड़े आयोजन में मेरा आशीर्वाद निश्चित रूप से मांगती रहती है, जिसे मैं अपनी जिम्मेदारी समझ कर निभाने का हर संभव प्रयास करता हूं। यही नहीं उसके संचालन में ही नहीं, अनेक मंचों पर उसके साथ काव्य गोष्ठी भी किया और कर रहा हूं, उसके आग्रह को मैंने हमेशा आदेश समझकर स्वीकार किया। क्योंकि उसके आग्रह में हमेशा एक छोटी बहन का भाव भरा आग्रह महसूस करता हूँ।

सबसे खास बात यह है कि इसके लिए मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली भी मानता हूँ। साथ ही ईश्वरीय विधान के अनुसार पक्षाघात की पीड़ा के बीच इसे अपने लिए सकारात्मक पहलू भी। जिससे मुझे अपनी पीड़ा, अपने दर्द का अहसास नकारात्मक भाव की ओर नहीं बढ़ पाता।

मुझे खुशी है कि बहुत से अनदेखे अंजाने रिश्ते आज मेरे लिए संबल बन रहे हैं, जो अपने उम्र और रिश्तों के अनुरूप मान सम्मान, स्नेह आशीर्वाद तो दे ही रहे हैं, अपने अधिकारों का लाभ उठाने में भी नहीं हिचकते, समय समय पर लड़ते झगड़ते, आदेश सरीखा निर्देश देने में भी पीछे नहीं रहते।

हम सबको पता है कि आभासी संबंधों के इस वृहद दायरे में शामिल हर किसी से शायद कभी भी आमने सामने मिल पाना असम्भव है। फिर पिछले लगभग चार सालों में पक्षाघात की पीड़ा के बीच इन्हीं रिश्तों की बदौलत ही मैं अपनी जीवन रेखा को मजबूत होता महसूस करता आ रहा हूं। साथ ही मुझे यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि आभासी ही सही लेकिन रिश्तों की मर्यादा को मैं ऊंचाइयों की ओर ले जाने का निरंतर प्रयास करता हूं और समुचित मान सम्मान भी। आत्मीय भाव से ही सही लेकिन मुझे नतमस्तक होने में भी कभी संकोच नहीं होता और शायद यही मेरी ताकत, मेरी सबसे अनमोल पूँजी, मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान और उपलब्धि है।

ईश्वर से यही प्रार्थना है कि जब तक सांस चले तब तक मैं अपने हर रिश्ते को ऊंचाइयाँ दे सकने में समर्थ रहूँ। क्योंकि मेरे जीवन पथ को सुगम, सरल, सहज बनाने में ऐसे रिश्तों का जो कर्ज मुझ पर चढ़ रहा है, उसे उतार पाना मेरे लिए निश्चित ही असम्भव है। क्योंकि ये क़र्ज़ निरंतर बढ़ ही रहा है। जिसका मुझे अफसोस  नहीं, बल्कि गर्व ही होता है।

ऐसे सभी आत्मीय रिश्ते को मैं हमेशा नमन वंदन अभिनंदन करते हुए यथोचित मान सम्मान, स्नेह आशीर्वाद सहित चरण स्पर्श करता हूं और आगे भी करता रह सकूंगा, ऐसा विश्वास भी है

अंत में मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि रिश्ते कोई भी और कैसे भी हों, उनकी अपनी गरिमा और विश्वसनीयता होती है। जिसकी मर्यादा और मान सम्मान का दायित्व हम पर है और मुझे गर्व है कि इन्हीं आभासी रिश्तों की दहलीज पर मुझे निजी तौर पर मेरे आस पास सुरक्षा का घेरा मजबूत कवच जैसा बोध कराते हुए मेरा संबल बन रहा है। आज के मेरे हालात के लिहाज से यही मेरी ताकत और विशिष्ट पहचान है। जो मुझे अपने विशेष होने का अहसास कराता है।

– सुधीर श्रीवास्तव, गोण्डा,  उत्तर प्रदेश

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