कोई तूफ़ाँ उठा रहे होंगे,
लाड़ली को सता रहे होगें।
फ़ख़्र करते पिता जो बेटी पर,
आँख से खूँ बहा रहे होगें ।
लालची तो दहेज के कारण,
कोई दुनियां मिटा रहे होगें ।
बेटियाँ काम करती’ दफ्तर में,
आदमी सटपटा रहे होगें ।
आज वेतन मिला उसे हँसकर,
पास अपने बिठा रहे होंगें ।
देर आफिस में हो गयी घर में,
खूब तांडव मचा रहे होंगे ।
हो गयी लाड़ली ‘उषा’ अफसर,
पलकों पर सब बिठा रहे होंगे।
– डॉ उषा झा रेणु देहरादून, उत्तराखंड