मनोरंजन

मेरे खालीपन से ही भरा हैं – रेखा मित्तल

हां,मेरे खालीपन से ही भरा हैं

तुम्हारा यह हरा-भरा घर

आचार की बरनियाँ

पापड़ और बड़ी के डिब्बे

मेरे मन के अहसास से ही तो भरे हैं।

तुम पूछते हो, क्या करती हो?

बस अपने अधूरेपन से

तुम्हारे घर को पूरा भरती हूं

हां,मेरे खालीपन से ही भरा है

तुम्हारा हरा भरा घर…

भोर होते ही तुलसी के चौरे से

आती हुए महक

रसोई के पास से निकलती हुई

मसालों की खुशबू

मेरे जज्बातों से ही निकलती हैं

चाहत भी नहीं रही कुछ पाने की

अधूरी से जिंदगी अब पूरी होने लगी हैं

हां ,मेरे खालीपन से ही भरा हैं

तुम्हारा हरा भरा घर…

अलमारी में करीने से सजे कपड़े

पर्दो के डिजाइन और मेजपोश की कढ़ाई

बुकशेल्फ में से झांकती किताबें

मेरे सालों के खालीपन से ही सजे हैं

एक अजीब सी चुप्पी छाई रहती हैं

इस घर की खामोश दीवारों पर

पर मेरे अधूरे ख्वाबों से ही सजा हैं

तुम्हारा यह हरा भरा घर…

– रेखा मित्तल, चण्डीगढ़

Related posts

प्रलय से कम नहीं होता – अनुराधा पाण्डेय

newsadmin

शबरी के राम – डा० क्षमा कौशिक

newsadmin

गीत – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

Leave a Comment