जले दिल जिंदगी हँसती नहीं है,
कहाँ जाये यहाँ मस्ती नहीं है।
जिधर देखें परेशाँ लोग रहते,
नजाकत या अदा दिखती नहीं है।
गिला शिकवा यहाँ का है तमाशा,
सदा हालात भी अच्छी नहीं है।
यहाँ हर आदमीं जलता हमेशा,
लगे दिलदार की बस्ती नहीं है।
तजुर्बा कार या रहबर न कोई,
दिखा दे राह जो दिखती नहीं है।
यहाँ इंसा रहे बेचैन हर दम,
लगा दे पार वो कश्ती नहीं है।
तड़पता रात दिन ‘अनि’ बेसहारा,
बताये जिंदगी सस्ती नहीं है।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड