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सत्ता सुंदरी की होली – प्रदीप सहारे

सत्ता सुंदरी संग,

होली खेलने ।

तैयार बैठे हैं ।

राजनीति के प्यादे ।

लेकर वही पुरानी कसमें,

वही पुराने वादे।

सत्ता सुंदरी संग,

खेलने होली ।

लगा रहें ,एक एक दाँव।

लांछन, वंदन,

नये नये गठबंधन ।

दे रहा कोई,चोर की गाली।

कोई कह रहा उसे मवाली।

चार मुस्टंडे बनाकर टोली।

सोच रहें सब मिलकर,

कैसे खेले,

सत्ता सुंदरी संग होली।

रंग गुलाल का खेले,

या खेले धर्म के नाम,

खून की होली ।

सत्ता सुंदरी भी हैं,

दिलफेंक दिलवाली ।

एैरे गैरे के ना ,

हाथ आनेवाली ।

जो करेंगा उसकी रखवाली ।

खेलेंगी उसके साथ,

जी भरकर होली ।

✍प्रदीप सहारे, नागपुर, महाराष्ट्र

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