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सतरंगी मन हुआ होली में – सुनील गुप्ता

(1)” सतरंगी “, सतरंगी हुआ जाए परिवेश सारा

और ये जीवन बनें प्रकृतिस्थ हमारा  !

चहुँ ओर से चली आएं हर्षाती खुशियाँ…,

और जीवन में खिल उठे इंद्रधनुष प्यारा !!

 

(2)” मन “, मन-मयूर चले नाचते और झूमते

और कोयल सी गुनगुनाए ये मन बगिया !

बह रही अहर्निश दसों दिशाओं से हवाएं..,

और चलें बाँटते प्रेम आनंद अपार खुशियाँ !!

 

(3)” हुआ “, हुआ वही जो मन ने यहाँ पे चाहा

और फिर वैसे ही सुविचारों ने जन्म लिया  !

चुनीं जीवन की यहाँ पर हमने वही राहें….,

जहाँ आनंद का समंदर हिलोरें लेते देखा  !!

 

(4)” होली “, होली बहुत हो ली इस जीवन में

चलें प्रेम संग रचाएं अब मनोमय होली  !

मनाएं निशदिन जीवन में रंगबिरंगी होली….,

और चलें बाँटते स्नेह,बोलें मीठी मधुर बोली !!

 

(5)” में “, मेंड़ बनाए चलें जीवन के इर्द-गिर्द ऐसी

कि, बनी रहे जीवन में प्रसन्नता व खुशहाली !

और चले सदा ये जीवन हँसता गाता मुस्कुराए.,

फैलाएं प्रेम आनंद खुशियों के रंगों की रंगोली !!

सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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