फर्ज पर प्रेम नित लुटाये हम,
किन्तु हक को सखा न पाये हम।
जिंदगी सर्वदा रही रूठी,
हर तरह से उसे मनाये हम।
ईश से प्रश्न नित्य ये पूछा,
भाग्य में अश्रु क्यों लिखाये हम।
त्याग, ममता रहा हमारा धन,
उम्र इसकी सदा बढ़ाये हम।
मान कर देव नित जिन्हें पूजे,
भूल कर ‘मधु’ उन्हें न भाये हम।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश