पंछियों में सबसे न्यारी गौरेया,
हाथ किसी के न आती
अपनी भाषा में गुनगुनाती गौरेया,
प्रसन्न रहो यह पाठ पढ़ाती।
तिनका-तिनका जोड़ घर संवारा ,
धूप ,हवा ,बरखा से परिवार बचाया ।
मेहनत से जीना सिखलाया,
हम सब को यह पाठ पढ़ाया।
उजड़ते जंगल, फैलते शहर
ईट पत्थरों के हो गए मकान ,
अब कहां गई वह गौरेया ?
ढूंढ रहा उसको इंसान
प्रश्न एक है मन के भीतर,
काट दिए जब पेड़ सब
अब यह गौरेया कहां रहेगी ?
अपने दुख की व्यथा किसे कहेगी?
– रेखा मित्तल, चण्डीगढ़