तन्हाई को गुनगुनाता रहा,
हाले-दिल पे मुस्कुराता रहा।
वो तो नदी सी बहती रही,
मगर मैं सदा प्यासा रहा।
कसक जगती रही दिल में,
मैं मन को सहलाता रहा।
मासूम सा चेहरा तीरे-नज़र,
दिल क्या-क्या सहता रहा।
नज़र-अंदाज़ जिसने किया,
वही दिल को मेरे भाता रहा।
आलम-ए-इंतज़ार क्या कहे?
दिल रोज़ फरेब खाता रहा।
जिसे ढूंढ़ती रही निराश आँखे,
वो दिल में आता जाता रहा।
– विनोद निराश, देहरादून