(1)” म “, महिमा
है महाकालेश्वर की
जगत में अपूर्व और अप्रतिम !
होएं पूर्ण मनोकामनाएं सबकी….,
करके दक्षिणामूर्ति के दर्शन अनुपम !!
(2)” हा “, हाथ
जिसपे रखदें श्रीमहाकाल
वही तर जाए है ये भवसागर !
है ये लिंगम स्वयंभू त्रिकाल….,
पाएं श्रीदर्शन मनोहारी शिवकृपा अपार !!
(3)” का “, कालब्रह्मा
हैं महादेव पिता
और माता श्रीदुर्गा अष्टंगीदेवी !
दिव्य ज्योर्तिलिंग के करके श्रीदर्शन….,
पाएं सभी यातनाओं एवं कष्टों से मुक्ति !!
(4)” ल “, ललाटपे
त्रिपुंड तिलक सजाएं
करें श्रीदक्षिणामूर्ति के दर्शन !
और चलें सभी मनोविकारों को भगाए….,
करें अद्भुत भस्म आरती के दिव्यदर्शन !!
(5)” महाकाल “, महाकाल
त्रिपुंडधारी श्रीविराज प्रिय
लगे मानों स्वयं श्रीमहादेवजी हैं पधारें !
हुए कृतार्थ हम पा श्रीदर्शन भव्य….,
है सौभाग्य कि श्रीविराज बने हमारे !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान