ऋतुराज वसंत
आया गाए गीत
बिखेरे चहुँओर छटा अनंत !
वन उपवन कानन खिले……,
खिलीं उपत्यकाएं गिरि पर्वत !!1!!
क्षितिज पार
दिखें दृश्य अनमोल
चली करके श्रृंगार वसुंधरा !
छम-छम बाजे पायल……,
चली सरसाए प्रकृति अपरा !!2!!
मकरंदी हवाएं
बहे मंद-मंद
चलें भ्रमर गीत गुनगुनाए !
चहुँओर बिखरा है आनंद…..,
मन करें विहार हों आएं !!3!!
मदमाता वसंत
खिली आम बौराई
फैली खुशियाँ दिग दिगंत !
दसों दिशाएं बहारें छाई….,
भरें परवाज़ मनव्योम पे अनंत !!4!!
आनंदित मन
अब चले हर्षाए
गाए प्यार भरे गीत !
कोयल गाए कुहू कुहू….,
चलें बनालें प्रिय मन मीत !!5!!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान