पंचम है तिथि माघ पुनीत जुटें नर-नारी’ प्रयाग नगरिया।
संगम तीर लगा डुबकी जन ओढ़ रहे मन राम चदरिया।
मातु सरस्वती’ शीश धरें कर सार्थक हो निज आज उमरिया।
भक्त उलीच रहे पग में रस भक्ति भरी अब प्रेम गगरिया।
स्वागत है मधुमास सुहावन पूर्ण धरा लगती वन नंदन।
मंद सुगंधित वायु बहे गमके महिती महके शुभ चंदन।
शारद का कर जोड़ करें हर भक्त सदा मन से अभिनंदन।
घण्ट बजा ध्वनि शंख करा शुभ पूजन से करते तव वंदन।
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश