सुरमई शाम मे
थोङा सा सूरज का रंग
गुलमोहर सी झटा
बिखेर रहा था
जैस दो दिल इश्क
करते है तो सतरंगी हो जाते है
सब रंग मिल जाते है
दिल आशना है
तभी तो चाहते रंवा है
उपर से यह समा
मदहोश करने के लिये काफी था
तेरा यहां ना होना
मुझे हर खुशी से महरूम कर रहा है
साथ ही साथ सारे रंगो को भी
फीका कर रहा था
दरिया भी मचल-मचल कर शान्त हो गया था
काश ये ढलता हुआ सूरज
इतना बेताब ना होता
तेरे आने तक जरा थम जाता
तेरी आनगी उसकी रवानगी का
मिलन हो जाता
तो मेरे लिये ये मंज़र
और भी खूबसूरत हो जाता
– मोनिका जैन मीनू, फरीदाबाद, हरियाणा