सदा प्यार पलती रही है,
दीया सी वो जलती रही है।
सजी आज डोली रही है,
पिया घर में सजनी रही है।
सजा सेहरा अब तुम्हारा,
चमक चाँदनी सी रही है।
खुशी आज देखी अधर पर,
फलीभूत शादी रही है।
चले आ रहे है तेरे दर,
दुआ की यह अरजी रही है।
मिली आज तुमसे जुदाई,
तेरी लौ मे जलती रही है
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़