जिंदगी उलझी पहेली बेवज़ह करती फ़साद ।
मौत बस सच्ची सहेली ना- मुरादों की मुराद ।
पेट में दाना नहीं है आंत में पानी नही ,
हुक्म है सरकार का ये भोज में खाओ सलाद ।
काफिरों से बैर जिसका कौन सा भगवान वो,
एक दिन दुनिया जला देगा उसी का यह जिहाद ।
यह जमीं जन्नत सरीखी और मत गंदा करो ,
युद्ध के अभ्यास से होने लगा सागर विषाद ।
जाति रूपी ज़ख्म अब नासूर बनते जा रहे ,
देश की आबो-हवा में घुल रही इनकी मवाद ।
धर्म के कुछ कारखाने गढ़ रहे शैतान अब,
राजनैतिक कुछ मशीनें कर रहीं इनको खराद ।
प्रश्न गंगा कर रही है मौन भगीरथ खड़े ,
स्वच्छता के नाम पर क्यों कर रहे नेता विवाद ।
पीर पैगंबर यहां सब दे गए संदेश ये ,
अंश सब भगवान के शादाब “हलधर”या निषाद ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून