दर्दे-दिल की ये इक कथा है,
वेदना मेरी ये इक व्यथा है।
मौन निमिष फितरत तेरी ,
ये देख जख्म खूब मथा है।
आँखे अश्कबार हुई रात भर,
वो न जाने मुहब्बत अथा है।
भग्न हुआ जो उरअंतस मेरा,
बात मेरी बात नहीं तथा है ।
तेरी बेरुखी के बाद मैंने भी,
मन को देर तलक मथा है।
जब काम नहीं आयी युक्ति,
बेकार उमर भर की जथा है ।
तू पाषाण ह्रदय मैं मोम सा,
निराश मन स्थिति यथा है।
– विनोद निराश , देहरादून