मनोरंजन

छेरछेरा परब – अशोक यादव

हमर मन के गली-खोर म हवय डेरा।

माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा।।

 

धान ह धरागे, पुस पुन्नी के दिन आगे।

टूरी-टूरा मन सुआ अउ डंडा नाच नाचे।।

हम लइका-पिचका मन घेरे हवन घेरा।

माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा।।

 

कोनों धरे हन बोरी, कोनों मन चुरकी।

कोनों धरे हन झोला, कोनों मन अंगौछी।।

छबाए कोठी के धान ल झटकुन हेरा।

माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा।।

 

एक पसर देदे या देदे सूपा म भरके।

कहूँ खोंची म देबे, लेलेबो हमन लरके।।

दूसर दूवारी जाना हे, होगे अबड़ बेरा।

माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा।।

– अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

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