प्यार करता हर्ष का संचार जीवन में,
नृत्य करतीं हैं उमंगें व्यक्ति के मन में।
जब सदन में हो उजाला त्याग ममता का,
वास अपनापन करे हर वक्त आँगन में।
प्रीति पावन को नहीं संसार पढ़ पाता,
व्याप्त रहता है सदा अनुराग धड़कन में।
ताप हित संतान में सहते रहें पालक,
आद्रता करता समाहित गुण यही घन में।
जोर चलता है जहाँ संवेदनाओं का,
रोक दे उपकार यह साहस न साधन में।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश