मनोरंजन

मन मंदिर – सुनील गुप्ता

आओ अपने मन मंदिर में बैठे

श्रीप्रभु का कर आएं दर्शन  !

नित्य सवेरे उठके पहले……,

करलें श्रीजी का हम संकीर्तन !!1!!

 

क्यूँ बाहर तू नित्य है जाता

जब बैठे प्रभु तेरे ही अंदर  !

अपने मन में झाँक देखले……,

मिल जाएंगे तुझे वहां पे ईश्वर !!2!!

 

बाहर तो केवल मिथ्या है

है जैसा दिखता वैसा नहीं   !

अंदर तेरे ‘स्व’, में बसता……,

तेरा सच्चा परम परमेश्वर वहीं  !!3!!

 

तू है स्वयं आनंद निर्झर

क्यूँ ढूंढें है सुकून शांति बाहर  !

बहता तेरे अंदर अज़स्त्र…..,

एक पवित्र सुख का अनंत सागर !!4!!

 

मन ही है सच में एक मंदिर

फैला बाहर आडंबर का अंबार  !

बसे मन में हैं प्रिय आत्माराम……,

कर लिया करें उनसे साक्षात्कार!!5!!

 

जीवन की आपधापी में

हम भूल बैठे स्वयं को ही  !

और अंदर के आनंदधन से ….,

रहे बने सदा वंचित अंजान ही  !!6!!

 

आओ चलें मन मंदिर की ओर

कर आएं दर्शन प्रभु श्रीहरि के   !

और डूबके प्रेम आनंदरस में…..,

भरलें ऊर्जा उमंग उत्साह फिर से !!7!!

सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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