मनोरंजन

ग़ज़ल – शिप्रा सैनी

ख़ामोश हैं आबादियाँ, बस गाड़ियों का शोर है।

फिर भागने और दौड़ने को होती अगली भोर है।

 

अब सिर्फ बुनियादी जरूरत पूरी करनी तो नहीं,

सबको दिखावे के लिए, करनी कमाई ‘मोर’ है।

 

ढीली रखें, थामें रहे पर, परवरिश की रील को,

धागा उलझ जाये गर, मुश्किल से मिलता छोर है।

 

यू-ट्यूब, इंस्टा, फेसबुक में जीता है अब नौजवाँ,

फ्यूचर से अपने रुख हटा फीचर्स की बस ओर है।

 

जुड़ते यहाँ सब फेसबुक पर सौ से लेकर ‘k’ तलक,

जोड़े खुशी से जो हमें पर वो कड़ी कमजोर है।

 

जब वह निभाता है नहीं तो हम निभायें क्यों भला,

इस सोच से ही टूटती रिश्तों की नाज़ुक डोर है।

✍शिप्रा सैनी मौर्या, जमशेदपुर

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