मनोरंजन

कुर्सी का खेल – अशोक यादव

जमीन पर बैठने वाले मानव,

चटाई पर बैठने लगे हैं आज।

छोटी सी तिपाई पर बैठने वाले,

कुर्सी पर बैठे कर रहे हैं राज।।

 

राजा जनता, प्रजा बन गयी,

आज सेवक बन गया राजा।

प्रजा तरस रही दाने-दाने को,

राजा खा रहा पेट भर खाजा।।

 

लोभ का लॉलीपॉप दिखाया है,

स्वाद मीठा है या फिर नमकीन।

सभी दौड़ रहे उनके पीछे-पीछे,

कसमों, वादों पर करके यकीन।।

 

देखते हैं नये सूरज की रोशनी,

अंधेरा होगा या फैलेगा प्रकाश।

वंचितों को मिलेगा उनका हक,

जीत पाता है लोगों का विश्वास।।

 

पहिए की कुर्सी घूमेगी किस ओर,

कब तक सही पटरी पर चलेगी रेल।

किसको मिलेगा कितना फायदा,

कुर्सीधारी खेलेंगे कुर्सी का खेल।।

– अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

Related posts

जिस देश में शासक का चुनाव – गुरुदीन वर्मा

newsadmin

कविता – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

फिर वो ही – सविता सिंह

newsadmin

Leave a Comment