मुगलों ने मचा दी त्राहि त्राहि सब ओर,
धर्म जाति के नाम पर हुई अनीति घोर।
खड़े हुए तब ढाल बन मां नानकी के लाल,
श्रीष्ट की चादर नाम पड़ा ,थे सच्चे सरदार।
चांदनी चौक,सरेआम,दंड मिला अति क्रूर,
हठी औरंगजेब ने, धड़ किया शीश से दूर।
नवें गुरु, गुरु तेग बहादुर ने दी अपनी जान,
मानवता के हित लड़े न खोई अपनी आन।
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लिखो गीत मन लिखो प्रीत,
हो गया सवेरा लिखो गीत ।
पंछी गाते हैं मधुर गान,
सुनकर कोयल की मधुर तान।
शीतल पवन खिलते सुमन,
क्यों अब भी तेरे अलस नयन।
कुछ तो मन के तुम लिखो गीत,
हो गया सवेरा लिखो प्रीत।
– डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड