गीली मिट्टी सा मनुज, पाकर प्यार दुलार।
माँ के हाथों से सजे, पाये शुचि आकार।।
जग जननी की हो कृपा, मिले जन्म उपहार।
माता के अनुराग से, सज्जित है संसार।।
जीवन की उपयोगिता, सिद्ध करे माँ नित्य।
जैसे प्रतिदिन जीव को, दें उजास आदित्य।।
माँ की आँखों से अगर, देखें सब संसार।
जग में दिखें सुपात्र ही, बहे प्रेम रस धार।।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश