कूप अब पाताल में ईमान के गरके हुए हैं !
गीत बोलो क्या सुनाऊँ लोग पत्थर के हुए हैं !
निर्भया को न्याय मिलने में लगे हैं साल कितने ।
राम तंबू में फसे थे फट गए त्रिपाल कितने ।
तीन लोको के विधाता अब कहीं घर के हुए हैं ।।
गीत बोलो क्या सुनाऊँ लोग पत्थर के हुए हैं ।।1
चोर डाकू फिर रहे हैं संत का चोला पहनकर ।
काग बदले रूप अपना हंस का खोला पहनकर ।
बिम्ब अब देखूँ कहाँ पर आइने दरके हुए हैं ।।
गीत बोलो क्या सुनाऊँ लोग पत्थर के हुए हैं ।।2
आज के कवि और लेखक राज सत्ता के दुलारे ।
मंच पर दिखते विदूषक नायकों सा भेष धारे ।
सारथी साहित्य के मति भ्रष्ट हो ठरके हुए हैं ।।
गीत बोलो क्या सुनाऊँ लोग पत्थर के हुए हैं ।।3
तीन बंदर संत के ख़ुद देख लो पागल हुए हैं ।
राजसत्ता के लिए जो चीन के कायल हुए है ।
लोभ लालच कीच में ये शीश तक सरके हुए हैं ।।4
हाल ऐसा ही रहा तो युद्ध घर में ही छिड़ेगा ।
फावड़ा तलवार बन बंदूक से भी जा भिड़ेगा ।
विश्व में बदलाव “हलधर ” मार या मरके हुए हैं ।।
गीत बोलो क्या सुनाऊँ लोग पत्थर के हुए हैं ।।5
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून