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ग़ज़ल (हिंदी) – जसवीर सिंह हलधर

कमसिन है लाज़वाब है हिंदी की ये ग़ज़ल,

समझो  नहीं  खराब  है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

 

ये मकतबों में मयकदों सा  काम भी करे ,

शब्दों की इक शराब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

 

वो पूंछते  हमें  करी  क्या  खोज आपने ,

हर प्रश्न का ज़वाब  है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

 

पढ़ना इसे ज़बाब तो दिल थाम के पढ़ो ,

अश्कों की इक क़िताब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

 

जिसने भी पढ़ के देख ली वो सोचता रहा ,

सहरा में इक सराब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

 

वो जूझते रहे यहां  भाषा  विवाद में ,

हमको मिला खिताब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

 

हलधर “इसे निकाल के लाये हैं बाग से ,

गैंदा नहीं गुलाब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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