कमसिन है लाज़वाब है हिंदी की ये ग़ज़ल,
समझो नहीं खराब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।
ये मकतबों में मयकदों सा काम भी करे ,
शब्दों की इक शराब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।
वो पूंछते हमें करी क्या खोज आपने ,
हर प्रश्न का ज़वाब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।
पढ़ना इसे ज़बाब तो दिल थाम के पढ़ो ,
अश्कों की इक क़िताब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।
जिसने भी पढ़ के देख ली वो सोचता रहा ,
सहरा में इक सराब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।
वो जूझते रहे यहां भाषा विवाद में ,
हमको मिला खिताब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।
हलधर “इसे निकाल के लाये हैं बाग से ,
गैंदा नहीं गुलाब है हिंदी की ये ग़ज़ल ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून