प्रात सब ग्वाल- बाल,
साथ है कन्हैयालाल,
गायो के बीच चले,
बजा रहे बाँसुरी।
शीश मोर पंख धारी,
कुण्डल की छवि भारी,
श्याम की बडी आंखें,
छटा छाई माधुरी।
रास रचाये निधि वन में,
मोह लिया गोपी मन,
बाँसुरी की धुन सुन,
गोपिया हो गई बावरी।
– कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखण्ड