मनोरंजन

चौपाई सी तुम – राजू उपाध्याय

श्वासों   में  अमराई  सी  तुम,

धड़कन  में  शहनाई  सी तुम।

 

मन  के  चित्रकूट  में  बसती,

मानस  की  चौपाई  सी तुम।

 

पवन  झकोरों के संग महकी,

फागुन  की  पुरवाई  सी तुम।

 

शांत  अचंचल  रूप  तुम्हारा,

सागर  की  गहराई  सी  तुम।

 

सप्त   नदी   की  धार  समेटे,

गंगा  की  अंगनाई   सी  तुम।

 

रूप  अकिंचन, मन  पावन  है,

जीवन  की  सच्चाई  सी  तुम।

 

प्रेम   ग्रंथ   का  पाठ  पढ़ाती,

राधा  की  परछाईं  सी  तुम।

 

रौद्र  रूप  में  भृकुटि  चढ़ाती,

यमुना की  जमुनाई  सी  तुम।

 

प्रेम   घाट  पर  नर्तन   करतीं,

मधुवन  में  अंगड़ाई  सी  तुम।

–राजू उपाध्याय,एटा, उत्तर प्रदेश

Related posts

मेरी कलम से – मीनू कौशिक “तेजस्विनी”

newsadmin

धरती – ममता जोशी

newsadmin

दोहे – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

Leave a Comment