जनवरी को जून बतलाने लगे हैं आज वो,
धार्मिक उन्माद उकसाने लगे हैं आज वो ।
फिर चुनावों के लिए तैयारियां हैं जोर से ,
हिंदुओं पर खूब चिल्लाने लगे हैं आज वो ।
राजनैतिक धर्म इतना गिर चुका है साथियों ,
सभ्यता को रोग समझाने लगे हैं आज वो ।
चैनलों पर मज़हबी चौपाल अब सजने लगीं ,
नफरतों की रागिनी गाने लगे हैं आज वो ।
सोचकर हैरान हूं क्या हो रहा है मुल्क में ,
जातियों में आग फड़काने लगे हैं आज वो ।
मछलियों में खलबली है खौफ़ है दरियाब में ,
सिंधु के ठहराव खाने लगे हैं आज वो ।
देखकर कौतुक अनौखे रो रही है भारती ,
भाषणों में रोज धमकाने लगे हैं आज वो ।
कौन जाने अंत “हलधर” लोभ लालच का यहां,
देश के सद्भाव को ढाने लगे हैं आज वो ।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून