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ग़ज़ल (हिंदी) – जसवीर सिंह हलधर

ये सत्य एक शख़्स ने मरते हुए कहा,

था बालपन हसीन गुजरते हुए कहा ।

 

जन्नत जमीं पे आसमां प्रश्नों का जाल है ,

उसने किसी जमात से डरते हुए कहा ।

 

चहरे की झुर्रियां घनी उसका गवाह थी ,

सांसों की डोर आखिरी भरते हुए कहा ।

 

आया बुढ़ापा जिंदगी है शांत झील सी ,

सामान उसने बांधते धरते हुए कहा ।

 

बाकी नहीं है आग अब बूढ़े अलाव में ,

चिंगारियों ने अलविदा करते हुए कहा ।

 

सच्ची सहेली मौत बेईमान जिंदगी ,

सबने यही कलाम सिहरते हुए कहा ।

 

“हलधर” को क्या शऊर है गज़लात ,नज़्म का ,

उसने मेरा कद और उभरते हुए कहा ।

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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