मनोरंजन

पहला हर्फ़ – ज्योत्स्ना जोशी

एक सफ़ीना समंदर में चंद

लहरें गिन रहा है,

सफ़र की बेपरवाही में

राहें ताक रहा है

वो मुझमें जी रहा है

और मैं उसे तलाश कर रही हूं

मुट्ठी में रेत क़ैद कर

फिसलते लम्हों पर सांसें

रिहा कर रही हूं,

ये बेबसी है ज़ेहन की

या रूदाद-ए-हयात ही

कुछ यूँ

तुम्हारे बारे में अब बात नहीं होगी

इस फैसले पर पहला हर्फ़ तुम्हारे

लिए ही लिख रही हूं।

– ज्योत्स्ना जोशी. देहरादून, उत्तराखंड

Related posts

गजल – रीतू गुलाटी

newsadmin

गीतिका – मधु शुक्ला

newsadmin

कविता – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

Leave a Comment