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गीतिका – मधु शुक्ला

ला रहे हैं नीर का उपहार बादल,

खुश रहें तो बाँटते हैं प्यार बादल।

 

खिलखिलाते झूमते रहते हमेशा,

गीष्म से करते सदा तकरार बादल।

 

स्त्रोत जल के हैं प्रकृति के मित्र प्यारे,

हैं विटप विस्तार के आधार बादल।

 

देख घन नभ में कृषक सपने सजाते,

सांत्वना का कर रहे व्यापार बादल।

 

तृप्त वसुधा को करें बरसात लाकर,

देव के लगते हमें अवतार बादल।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश .

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