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प्रेम – अनिरुद्ध कुमार

प्रेम बिना क्या जीना, दिल में प्रेम जगा,

प्रेम हृदय से करना,  सबसे नेह लगा।

मानो इसको जीवन, नाहक क्या लड़ना,

मानवता में सुख है, सीखो खुश रहना।

 

दीनों की कर सेवा, थामो हाँथ जरा,

मन होगा आनंदित, सेवा काम खरा।

जागो मानव लागो, परहित काम बड़ा,

दिल से करना सेवा, होगा नाम बड़ा।

 

जीवन बीता जाये, मनु दिल से रागो,

सच्चा सेवक बनके, परहित में लागो।

हे मानव तूँ कुंदन, सबसे प्रेम करो,

ले मांथे पर चंदन, तारो और तरो।

– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

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