नव पराग से भरे कानन कुंज,
नव उल्लास से भरे मानव मन,
मधुर मद्धिम लहराये पवन सुर,
किसका मन अकुलाया फिर,
कौन है, अधीर सा पुकार रहा,
किसके स्वरों में मेरा नाम गुंज रहा,
मंथर स्पंदन में कौन बोल रहा,
किसके हित चंचल हृदय हो रहा,
क्या है जो अंदर- अंदर टूट रहा,
कौन वो अपना जो पराया ही रहा,
किसने लौटाये प्रेम भरे शब्द मेरे,
किस ठोकर से आहत हुए भाव मेरे,
किसने मर्यादाओं को मेरी ठुकराया है|
कौन जिसने समय मेरा बिसराया है,
स्तब्ध है मुझमें कौन अपरिचित है,
किसने मुझको, मुझमें बिखराया है|
जबाब देगा कौन अनुत्तरित प्रश्नों का,
गुंगे कंठ से निकले कैसे स्वर अहसासों का
हार रहा कौन थक कर मुझमें फिर से
कैसे भरेगे विश्वास -प्राण मुझमें फिर से,
– रश्मि मृदुलिका, देहरादून , उत्तराखंड