(1)”अपने “, अपने जीवन के हम ही कुम्हार
बनाए चलें स्वयं का जीवन !
कोई दूजा नहीं इसे बना सकता…..,
हम ही हैं स्वयं के निर्माता जनक !!
(2)”जीवन “, जीवन जैसा भी हमें यहां मिला
हैं हम ही मात्र इसके उद्धारक !
कब कैसे यहां लेना इससे है काम…..,
हैं हम ही इसके अब यहां निर्णायक !!
(3)”के “, केवल और केवल हम ही हैं मित्र
और शत्रु भी हैं स्वयं के खुदी !
कोई हमें गिरा, यहां उठा नहीं सकता..,
हम ही हैं किस्मत के निर्माता खुदी !!
(4)”हैं “, हैं हम ही स्वयं के लिए जिम्मेदार
और कोई दूजा नहीं है यहां विरोधी !
बस,चले बनाएं अपना किरदार…..,
और ढूंढे स्वयं में ही स्वयं का प्रतिरोधी !!
(5)”हम “, हम से जग है, जग से हम नहीं
ये बात रखें यहां हमेशा याद !
और करते चलें यहां काम वही….,
जो चले बढ़ाए हममें विश्वास !!
(6)”कुम्हार “, कुम्हार की जैसे चलें गढ़ते जीवन
और समझें इस माटी का मोल !
कभी नहीं इतराएं स्वयं पर यहां…..,
और रहें सदा बोलते मीठे बोल !!
(7)”अपने जीवन के हैं हम कुम्हार ”
ये बात कभी नहीं यहां पे भूलें !
और अपनी माटी का समझ मोल….,
सदा रहें स्वीकारते गलतियां और भूलें !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान