प्यार दिल मे भरा पर छुपाना पड़ा,
हाय तेरा सितम भी दबाना पड़ा।
दर्द तेरा हमे आज क्यो कर मिला,
इश्क मे ये चलन भी निभाना पड़ा।
क्यो मनाना पड़ा आज उनको सनम,
दर्द में रात भर सर झुकाना पड़ा।
जुल्म तेरा सहा यार मैने बड़ा,
आँख से प्यार को अब हटाना पड़ा।
खिलखिला कर जिये जिंदगी खूब है,
संग तेरे पिया मुस्कुराना पड़ा।
दोस्ती को वो समझे कहां आज तो,
साथ रहकर हमें अब मनाना पड़ा।
दोष देते सभी नेक बंदे को *ऋतु,
हाय कैसे सहे दूर जाना पड़ा।
– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़