वबा से मार खाये आंकड़े आराम करते हैं ।
दवा से तिलमिलाये फेंफड़े आराम करते हैं ।
बड़ी मुश्किल से पहुँचे हैं हजारों से दहाई तक ,
महामारी से लौटे सैंकड़े आराम करते हैं ।
सियासत ने गढ़े मुर्दे उखाड़े हैं बहुत यारो ,
इन्हें कैसे दबाएं फावड़े आराम करते हैं ।
मिठाई से महक गायब हुई है आज पर्वों पर ,
मुहब्बत गंध वाले केवड़े आराम करते हैं ।
समंदर दर्द अपना कह रहा है रोज रो रो कर ,
खँगालो मत मुझे कुछ केकड़े आराम करते हैं ।
कहीं बछड़े बिलखते हैं कटीली बाड़ से घायल ,
गले में जो पड़े वो जेवड़े आराम करते हैं ।
हवस मसरूफ़ है ग़द्दारियों का खेल जारी है ,
इन्ही मक्कारियों में रोकड़े आराम करते हैं ।
सही को झूठ कहना आम बातें राजधानी में ,
सियासी खेल में कुछ खोपड़े आराम करते हैं ।
रियाया को लुभाने का नया जुमला कहो “हलधर”,
चुनावी वायदों में झोंपड़े आराम करते हैं ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून