मनोरंजन

तुम्हारी कसम तुम बहुत याद आए – अनुराधा पाण्डेय

वाक्य इक छोटा तुम्हारा

“ठीक हूँ मैं” तुम सुनाओ….

वस्तुतः कितना बड़ा है ?

सच कहूँ, “संजीवनी है” ।

 

और होंगी मानती हूँ,

कोटि वाणी व्यंजना की ।

किन्तु मेरे हित न इससे ,

बात गुरु अनुरंजना की ।

क्या बताऊँ बात यह लघु,

हाय ! कितनी पावनी है ।

सच कहूँ,”संजीवनी ” है ।

 

सप्त सुर संगीत- जैसे

ध्वनि पँहुचते कान तक ये ।

जोड़ते मेरे हृदय के ,

तार को भगवान तक ये ।

आर्ष धुन मेरे लिए ये..

आत्मा की रागिनी है ।

सच कहूँ,”संजीवनी”है ।

 

वेद मंत्रों से विचरते

वर्ण फिर ये उर निलय में।

बैठ जाती एक लय- सी ,

जागतिक इस जड़ अलय में।

उर अमा को काटती धुन..

व्याप्त करती चाँदनी है ।

सच कहूँ,”संजीवनी ” है ।

– अनुराधा पाण्डेय , द्वारिका , दिल्ली

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