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क्या लिखूं ? – प्रीति पारीक

क्या लिखूं तेरे बारे में,

कलम भी एहसान फरामोश सी है,

चलती ही नहीं, कहती है,

तेरे दोस्त की हंसी नाजो सी है।

 

लिखना चाहा तुझे मेरे शब्दों में,

पर अफसोस ,

तेरी हंसी शब्दकोश से भी गहरी है।

 

पैमाने बहुत है तुझे आजमाने के,

क्या करूं ?

तेरी यारी मेरी आजमाइश में भी पूरी है।

 

तेरी खुशबू ही काफी है,

तुझे महसूस करने में ,

तेरी महक अबीर-गुलाल से भी गहरी है।

 

कदम थिरकते  हैं तेरे आने की खुशी में ,

क्यूंकि तेरी आहट ही,

मेरे अरमानों की पहली सीढ़ी है।

 

सपने देखे तेरे संग जागती अंखियों से,

देख संभल जा जरा,

मेरी आस्था, तुझ पर ,ईश्वर से भी गहरी है।

 

पंख फैला उड़ना चाहा,

संग तेरे मैंने पर ,

तेरी पहुंच सागर से भी गहरी है।

 

तू उम्मीद है मेरी, मेरा गुरूर है तू ,

मेरा स्वाभिमान, मेरा अभिमान है तू,,

याद रख मेरी चाहत तेरी चाहत से भी गहरीहै।

– प्रीति पारीक, जयपुर , राजस्थान

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