बागों के माली रखवाले , अब से नहीं जमाने से हैं ।
कलियों पर कांटों के ताले , अब से नहीं जमाने से हैं ।
भूख प्यास रोटी के लाले, अब से नहीं जमाने से हैं ।
हलधर के हाथों में छाले, अब से नहीं जमाने से हैं ।
मिली कहाँ पूरी आजादी ,खंडित हिंदुस्तान मिला है,
सरहद पर शोणित के नाले ,अब से नहीं जमाने से हैं ।
वातावरण आज भारत का , घुटन भरा बतलाते हैं जो ,
ऐसे नाग देश में काले , अब से नहीं जमाने से हैं ।
बटवारे की पढ़ो कहानी ,लाखों जलकर बुझीं जवानी ,
हिन्दू मुस्लिम रटने वाले , अब से नहीं जमाने से हैं ।
पानी दवा हवा हरियाली , पैसे वालों ने चर डाली ,
बेबस को आँखों में जाले , अब से नहीं जमाने से हैं ।
मेरी वाणी तो दर्पण है , असली सूरत दिखलाएगी ,
कवियों के छंदों में भाले , अब से नहीं जमाने से हैं ।
द्वापर से कलयुग तक देखा , अंधे राजाओं का लेखा ,
संसद में जीजा औ साले, अब से नहीं जमाने से हैं ।
दागी बाघी सदा रहे हैं देता है इतिहास गवाही ,
अँधियारों में दीप उजाले ,अब से नहीं जमाने से हैं ।
एक महामारी ने “हलधर”,तंत्र यंत्र सारे परखे है ,
नेताओं के ढंग निराले ,अब से नहीं जमाने से हैं ।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून