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गजल – ऋतु गुलाटी

डूबे हैं तिरी मस्ती में अब तो उतरने को,

आजा मिरे ख्याबो में अब तो उतरने को।

 

जीते रहे हैं हम तो शरमो हया मे अब तो,

कुछ वक्त गुजारे हम भी साथ चहकने को।

 

आँखें भी सनम तेरी खोजा भी करें हमको,

चाहा करे तुमकों क्यो उनसे ही मिलने को।

 

आ यार चले मयखाने ,चख ले सुरा हम भी,

दिन चार मिले हैं बस थोड़ा सा बहकने को।

 

मस्ती सी लगे आँखो में अब तो शिकायत भी,

क्यो छोड़ चले हमको फिर आज तड़फने को।

– ऋतु  गुलाटी  ऋतंभरा, चण्डीगढ़

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