neerajtimes.com- सतपाल भीखी पंजाबी काव्य क्षितिज के एक जगमगाते सितारे हैं। उनकी कविताएं विचारधारात्मक प्रौढ़ता से ओत-प्रोत तो हैं ही, साथ ही मानवीय मूल्यों के प्रति भी मज़बूती से प्रतिबद्ध हैं। उनकी कविताओं की सबसे बड़ी शक्ति है – जीवन की गहरी पकड़। यही कारण है कि उनकी कविताएं भाषा और क्षेत्र की परिधि को लांघ कर वैश्विक स्तर तक जा पहुंचती हैं। ‘मजदूर’ कविता से पता चलता है कि कवि न केवल समाजवाद का सही अर्थ जानता है, बल्कि वह वर्तमान समाजवादियों के पतन से भी भली-भांति परिचित है। यह सत्य कथन इस कविता को उत्कृष्ट कृति बना रहा है। ‘फवाद अंदराबी’ कविता भी शायर की निडरता की मिसाल है। उग्रवाद के समर्थक तालिबान चरमपंथ के खिलाफ आवाज उठाना बड़े जीवट की बात है। ‘माँ’ कविता में प्रयुक्त शतरंज की छवि और माँ के संघर्ष का वर्णन कविता को ख़ास बना रहा है। ‘आमद’ कविता भी बहुत ही सूक्ष्म भावों को अभिव्यक्त करती है। जीवन की इतनी गहरी पकड़ कविता को उच्च कोटि का बना रही है। ‘परिश्रम की लिपि नहीं होती’ कविता जीवन और जीवन-मूल्यों के प्रति कवि की ईमानदारी दर्शाती है।
इस उच्च स्तर के कवि को हिंदी के विराट पाठक जगत तक भी पहुँचना चाहिए, इसी उद्देश्य से इन कविताओं को हिंदी में अनूदित करने का प्रयास किया है-
(मूल पंजाबी कविता– सतपाल भीखी पटियाला, पंजाब अनुवाद– डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक, लुधियाना, पंजाब)
1 – माँ
रिश्तों की
हज़ार उलझनों का हल थी — माँ
माँ नहीं रही
मैं रिश्तों की शतरंज का
एक पिटा हुआ मोहरा
बन कर रह गया हूँ
मैं सोचता हूँ
रिश्तों से बचाती माँ
इस शतरंज में
कितनी बार
दांव पर लगी होगी।
कानों में रस घोलती
2 – फवाद अंदराबी
सारंगी
कहीं नहीं गई
दीवार की खूंटी पर
झूल रही है
लफ़्ज़, सुर, लय
ख़त्म नहीं हुए
अका-थका मन
सुरताल में नहाकर है
अब भी
संवादी-विस्मादी
दिल-दिमाग के रास्ते में
यह पड़ाव
आज भी टुनटुनाता है
बेशक आवाज़ को
ख़ामोश कर गए जाबिर-जल्लाद
और धीरे-धीरे घुन खाकर
ख़त्म हो जाएगी सारंगी भी
सिर को बेंधती
गोली की आवाज क्या आई,
कितने दिलों में
जाग उठी
धुनें बिखेरती सारंगी
जैसे ख़ला को चीरती रौशनी
धड़का दिल
तारों ने धुन पकड़ी
गज पकड़ने के लिए
आगे बढ़ा हाथ
गोली ने एक सिर बेंधा था
अब फ़िज़ाओं में
गूंज उठे हैं सुर
गाने लगे हैं अल्फ़ाज़
फवाद अंदराबी!
फवाद अंदराबी !!
फवाद अंदराबी!!!
(* फवाद अंदराबी* अफगानी लोक गायक, जिसे ज़ालिम तालिबान ने गोली मार दी थी)
3 – आमद
कोई आता है
अचानक
आते हुए
कितना कुछ ले आता है साथ
घर की
कितनी ही चीज़ों को
मिल जाते हैं
नये अर्थ
नये काम
कटोरियों-प्यालियों को
नव स्पर्श और शोभा मिल जाती है
कोई आता है
तो घर में
आग
पानी
रिज़क
की आमद होती है
घर में
हर शय के लिए
सब कुछ हो जाता है
नया-नवेला
कोई आता है तो
ऐसे ही नहीं आता
कितना कुछ साथ ले आता है
घर को नये अर्थ देकर
चला जाता है।
4 – परिश्रम की लिपि नहीं होती
अनपढ़ माँ ने
अपने पसीने से
कर्म करना पढ़ाया
अब शब्द हैं
या मेहनत
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
मेरे हिस्से आई
सांसों की पूंजी हो
या कर्मशीलता की…
मेरी है
अगर किसी माथे की एक बूंद चुराई
या टाफियों की रेज़गारी में से
एक आना खिसकाया
तो
मरी हुई माँ की
आँखों में भी
मर जाऊँगा।
5 – मज़दूर
वह सोचता है
दुनिया भर के मेहनतकशों को
एक करने वाले
आज एक-एक करके
अकेले-अकेले पड़ते जा रहे हैं
और दुनिया भर के कामगारों को
अलग-अलग करने वाले
एक होते जा रहे हैं
उनमें से कुछ ऐसे भी नज़र आ रहे हैं
जो ‘एक हो जाओ’ की ढफली बजाते फिरते थे
सब उसके श्रम से
उसके नाम पे
लूटते, खाते आ रहे हैं,
परिवार पालते आ रहे हैं
चालें चलते,
देश चलाते जा रहे हैं
वह सोचता है…सोचता है…
अभी भी उसकी मेहनत में
कुछ तो है
जो दुनिया उसकी ओर देखती है
वह अपनी ताक़त और सच्चाई से उत्साहित है
कि अभी भी उसमें कर गुज़रने के लिये
बहुत कुछ बाक़ी है…
वह सोचते-सोचते
‘शिकागो’ सहित
दुनिया भर के शहीद साथियों
को याद करता है!
ध्यान धरता है, नमन करता है
देखना…
वह क्या करता है!!!