है मुहोब्बत सांस भी बहका हुआ,
देख तुझको दिल भी दीवाना हुआ।
हर तरफ तेरी ही बातें गूंजती,
धड़कनों को भी नशा तेरा हुआ।
जो कदम बढ़ाना सिखाया अश्क़ दे,
छोड़ दिया परिवार को बिखरा हुआ।
कर गई बेचैन यादें आज भी,
सोचकर के अश्क़ का बहना हुआ।
क्यों शिकायत कर रहे ईश्वर से हम,
जो मिला वह कर्म का हिस्सा हुआ।
छू कर आई ये पवन तुझको सनम,
इक तराना सा उठा बहका हुआ ।
“ज्योति” उलझी जिंदगी की डोर यें ,
धैर्य से इसको भी सुलझाना हुआ ।
– ज्योति अरुण श्रीवास्तव, नोएडा, उत्तर प्रदेश