जुल्म कोई सहेगा कब तक,
आदमी चुप रहेगा कब तक।
इस जहाँ में फरेबी कितने,
रोज कोई लड़ेगा कब तक।
आज दुनिया तमाशा देखे,
हाँथ जोड़े अड़ेगा कब तक।
तड़पता दिल कराहे हरदम,
बोल दिलको दलेगा कब तक।
बुजदिलों की नहीं ये दुनिया,
सोंच खुद को छलेगा कब तक।
स्वार्थ की बह रही है आंधी,
कह कलेजा मलेगा कब तक।
‘अनि’ पुकारे दिखाओ दमखम,
आँधियों से डरेगा कब तक।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड