गया समझ जो जीवन दर्शन,
प्रिय लगता उसको जग कानन।
अहं क्रोध को रूखसत कर के,
प्राप्त करो सबसे अपनापन।
ख्वाब पूर्ण उसके ही होते,
वार सके जो श्रम पर तन मन।
दुआ करे अर्जित उसकी हो,
शाम जिंदगी की मनभावन।
जीवन मेला, हँसो हँसाओ,
मत दो तन्हाई को राशन।
कर्म साधना भाग्य न कोसे,
ढूँढो तो मिलता हर साधन।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश